पुण्यद्रुमलताजालै: कूजत्पुण्यमृगद्विजै: ।
सर्वर्तुफलपुष्पाढ्यं वनराजिश्रियान्वितम् ॥ ४० ॥
अनुवाद
सरोवर का किनारा पवित्र वृक्षों और लताओं के समूहों से घिरा हुआ था। ये वृक्ष और लताएँ सभी ऋतुओं में फलों और फूलों से भरे रहते थे। इन वृक्षों और लताओं में पवित्र पशु और पक्षी निवास करते थे और तरह-तरह की आवाजें निकालते थे। यह स्थान वृक्षों के कुंजों की शोभा से सजा हुआ था।