श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 21: मनु-कर्दम संवाद  »  श्लोक 38-39
 
 
श्लोक  3.21.38-39 
 
 
यस्मिन् भगवतो नेत्रान्न्यपतन्नश्रुबिन्दव: ।
कृपया सम्परीतस्य प्रपन्नेऽर्पितया भृशम् ॥ ३८ ॥
तद्वै बिन्दुसरो नाम सरस्वत्या परिप्लुतम् ।
पुण्यं शिवामृतजलं महर्षिगणसेवितम् ॥ ३९ ॥
 
अनुवाद
 
  सरस्वती नदी के बाढ़-जल से भरने वाला बिन्दु सरोवर ऋषियों के समूह द्वारा सेवन किया जाता था। इसका पवित्र जल केवल कल्याणकारी ही नहीं था, बल्कि अमृत के समान मीठा भी था। इसे बिन्दु सरोवर इसलिए कहा जाता था, क्योंकि जब भगवान् शरणागत ऋषि पर दया-द्रवित हुए थे, तो उनके नेत्रों से आँसुओं की बूँदें यहीं गिरी थीं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.