कौमारीं दर्शयंश्चेष्टां प्रेक्षणीयां व्रजौकसाम् ।
रुदन्निव हसन्मुग्धबालसिंहावलोकन: ॥ २८ ॥
अनुवाद
जब प्रभु ने बाल्यावस्था के अनुरूप कार्य किए, तब उन्हें केवल वृन्दावन के निवासी ही देख सकते थे। वे शिशु की तरह कभी रोते थे तो कभी हँसते थे और ऐसा करते हुए वे शेर के शावक की तरह प्रतीत होते थे।