तत्पश्चात् द्विजों के लिए यज्ञोपवीत संस्कार का आरंभ किया गया, और उसी के साथ वेदों की स्वीकृति के कम से कम एक साल पश्चात् पालन किये जाने वाले नियमों (प्राजापत्यम्), यौन सम्बन्धों से पूरी तरह दूर रहने के नियम (बृहत्), वैदिक आदेशों के अनुसार कार्य (वार्ता), गृहस्थ जीवन के विविध पेशेवर कर्तव्य (सञ्चय) और परित्यक्त अन्न इकट्ठा करके (शिलोञ्छ) बिना किसी की मदद के (अयाचित) जीविकोपार्जन की विधि आरंभ की गई।