श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 12: कुमारों तथा अन्यों की सृष्टि  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  3.12.34 
 
 
कदाचिद् ध्यायत: स्रष्टुर्वेदा आसंश्चतुर्मुखात् ।
कथं स्रक्ष्याम्यहं लोकान् समवेतान् यथा पुरा ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  एक बार की बात है, जब ब्रह्मा जी ये सोच रहे थे कि बीते हुए कल्प की तरह लोकों की सृष्टि कैसे की जाए तो सभी प्रकार के ज्ञान से भरे हुए चारों वेद उनके चारों मुखों से प्रकट हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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