श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  3.1.45 
 
 
तस्य प्रपन्नाखिललोकपाना-
मवस्थितानामनुशासने स्वे ।
अर्थाय जातस्य यदुष्वजस्य
वार्तां सखे कीर्तय तीर्थकीर्ते: ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे मित्र, अतएव भगवान की महिमा का कीर्तन करो, जो तीर्थस्थानों में महिमान्वित किये जाने वाले हैं। वे अजन्मा हैं, फिर भी ब्रह्माण्ड के सभी भागों के समर्पित शासकों पर अपनी अहैतुकी कृपा से वे प्रकट होते हैं। केवल उन्हीं के हितार्थ वे अपने शुद्ध भक्त यदुओं के कुल में प्रकट हुए।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध तीन के अंतर्गत पहला अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.