हे मित्र, अतएव भगवान की महिमा का कीर्तन करो, जो तीर्थस्थानों में महिमान्वित किये जाने वाले हैं। वे अजन्मा हैं, फिर भी ब्रह्माण्ड के सभी भागों के समर्पित शासकों पर अपनी अहैतुकी कृपा से वे प्रकट होते हैं। केवल उन्हीं के हितार्थ वे अपने शुद्ध भक्त यदुओं के कुल में प्रकट हुए।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध तीन के अंतर्गत पहला अध्याय समाप्त होता है ।