श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  3.1.44 
 
 
अजस्य जन्मोत्पथनाशनाय
कर्माण्यकर्तुर्ग्रहणाय पुंसाम् ।
नन्वन्यथा कोऽर्हति देहयोगं
परो गुणानामुत कर्मतन्त्रम् ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान का आविर्भाव दुष्टों के विनाश के लिए होता है। उनकी लीलाएँ दिव्य होती हैं और उन्हें समस्त लोगों की समझ के लिए ही रचा जाता है। अन्यथा, जब भगवान सभी भौतिक गुणों से परे हैं, तब उनके पृथ्वी पर आने का उद्देश्य क्या हो सकता है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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