श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  3.1.42 
 
 
सोऽहं हरेर्मर्त्यविडम्बनेन
द‍ृशो नृणां चालयतो विधातु: ।
नान्योपलक्ष्य: पदवीं प्रसादा-
च्चरामि पश्यन् गतविस्मयोऽत्र ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  दूसरों द्वारा बिना देखे दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद मुझे इस पर कोई आश्चर्य नहीं है। भगवान् के कार्य जो इस नश्वर संसार के मनुष्य के कार्यों की तरह ही हैं, दूसरों के लिए अचंभित करने वाले हैं, लेकिन भगवान् की कृपा से मैं उनकी महानता को जानता हूं, इसलिए मैं सब तरह से प्रसन्न हूं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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