श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  3.1.35 
 
 
अपिस्विदन्ये च निजात्मदैव-
मनन्यवृत्त्या समनुव्रता ये ।
हृदीकसत्यात्मजचारुदेष्ण-
गदादय: स्वस्ति चरन्ति सौम्य ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे भद्र पुरुष, अन्य लोग, जैसे कि हृदीक, चारुदेष्ण, गद और सत्यभामा के पुत्र, जो श्रीकृष्ण को अपनी आत्मा मानते हैं और बिना किसी विचलन के उनके मार्ग का अनुसरण करते हैं - क्या वे सब कुशल से हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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