श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  2.9.8 
 
 
दिव्यं सहस्राब्दममोघदर्शनो
जितानिलात्मा विजितोभयेन्द्रिय: ।
अतप्यत स्माखिललोकतापनं
तपस्तपीयांस्तपतां समाहित: ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्माजी ने देवताओं के हिसाब से हजारों सालों तक तपस्या की। उन्होंने आकाश से आती इस दिव्य आवाज़ को सुना और इसे ईश्वरीय स्वीकृति माना। इस तरह उन्होंने अपने मन और इन्द्रियों को काबू में किया। उन्होंने जो तपस्या की, वो न सिर्फ जीवात्माओं के लिए एक बड़ी सीख है, बल्कि इसलिए वे सभी तपस्वियों में सबसे महान माने जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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