श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  2.9.7 
 
 
निशम्य तद्वक्तृदिद‍ृक्षया दिशो
विलोक्य तत्रान्यदपश्यमान: ।
स्वधिष्ण्यमास्थाय विमृश्य तद्धितं
तपस्युपादिष्ट इवादधे मन: ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  जब उन्होंने वह ध्वनि सुनी तो अपने चारों ओर उसको बोलने वाले को ढूँढने की कोशिश की। किन्तु, जब वह अपने अलावा किसी और को नहीं देख पाया, तो उसने कमल के आसन पर दृढ़तापूर्वक बैठकर तपस्या करने में ही ध्यान लगाना श्रेष्ठ समझा, जैसा कि उसे निर्देश दिया गया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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