श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  2.9.6 
 
 
स चिन्तयन् द्वय‍क्षरमेकदाम्भ-
स्युपाश‍ृणोद् द्विर्गदितं वचो विभु: ।
स्पर्शेषु यत्षोडशमेकविंशं
निष्किञ्चनानां नृप यद् धनं विदु: ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  जल में स्थित ब्रह्माजी जब विचार में लीन थे, तब पास ही उन्होंने परस्पर जुड़े हुए दो शब्दों की ध्वनी दो बार सुनी। इनमें से एक सोलहवें और दूसरा इक्कीसवें स्पर्श अक्षर से लिया गया था। ये दोनों मिलकर विरक्त जीवन की संपदा बन गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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