स आदिदेवो जगतां परो गुरु:
स्वधिष्ण्यमास्थाय सिसृक्षयैक्षत ।
तां नाध्यगच्छद् दृशमत्र सम्मतां
प्रपञ्चनिर्माणविधिर्यया भवेत् ॥ ५ ॥
अनुवाद
ब्रह्माजी, प्रथम गुरु और ब्रह्मांड के सर्वोच्च जीव होने के बावजूद, अपने कमल के आसन के स्रोत का पता नहीं लगा सके। और जब उन्होंने भौतिक जगत की सृष्टि करना चाहा, तो वे यह भी नहीं जान सके कि किस दिशा से इस कार्य को शुरू किया जाए और न ही ऐसी सृष्टि करने की कोई विधि ही ढूँढ पाए।