श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  2.9.46 
 
 
यदुताहं त्वया पृष्टो वैराजात् पुरुषादिदम् ।
यथासीत्तदुपाख्यास्ते प्रश्नानन्यांश्च कृत्‍स्‍नश: ॥ ४६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन, आपने जो यह प्रश्न पूछा है, कि ब्रह्माण्ड भगवान के विशाल रूप से कैसे प्रकट हुआ, और अन्य प्रश्न भी, उनका उत्तर मैं पहले बताए गए चारों मंत्रों की व्याख्या करते हुए विस्तार से दूँगा।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दो के अंतर्गत नौवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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