प्रजापतिर्धर्मपतिरेकदा नियमान् यमान् ।
भद्रं प्रजानामन्विच्छन्नातिष्ठत् स्वार्थकाम्यया ॥ ४० ॥
अनुवाद
एक समय की बात है, जीवों के पूर्वज एवं धर्म के जनक भगवान ब्रह्मा ने समस्त जीवों के कल्याण को ही अपना स्वार्थ मानते हुए, नियमानुसार यम और नियमों को धारण किया।