श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  2.9.4 
 
 
आत्मतत्त्वविशुद्ध्यर्थं यदाह भगवानृतम् ।
ब्रह्मणे दर्शयन् रूपमव्यलीकव्रताद‍ृत: ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन, भक्ति योग में निर्मल व निस्वार्थ तपस्या के कारण ब्रह्मा जी से प्रसन्न होकर भगवान ने अपने शाश्वत और दिव्य रूप का दर्शन कराया और यही बद्ध प्राणी के लिए शुद्धि का परम लक्ष्य भी है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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