श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  2.9.33 
 
 
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद् यत् सदसत् परम् ।
पश्चादहं यदेतच्च योऽवशिष्येत सोऽस्म्यहम् ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे ब्रह्मा, तुम उस व्यक्तित्व का साक्षात्कार कर रहे हो, जो सृष्टि से पूर्व अस्तित्व में था जब केवल मैं ही था। उस समय भौतिक प्रकृति भी नहीं थी, जो सृष्टि का कारण है। जो अब तुम देख रहे हो, वह भी वही मैं हूँ और प्रलय के बाद जो बचेगा वह भी वही मैं ही हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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