श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  2.9.32 
 
 
यावानहं यथाभावो यद्रूपगुणकर्मक: ।
तथैव तत्त्वविज्ञानमस्तु ते मदनुग्रहात् ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  मेरी निस्पृह दया से तुम्हारे ह्रदय में उत्पन्न प्रत्यक्ष साक्षात्कार से मेरे बारे में सब कुछ जाग्रत हो जाएगा। अर्थात मेरा वास्तविक और शाश्वत रूप, मेरा दिव्य अस्तित्व, रंग, गुण और कार्य।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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