यावत् सखा सख्युरिवेश ते कृत:
प्रजाविसर्गे विभजामि भो जनम् ।
अविक्लवस्ते परिकर्मणि स्थितो
मा मे समुन्नद्धमदोऽजमानिन: ॥ ३० ॥
अनुवाद
हे अजन्मा प्रभु, आपने मेरे साथ ठीक वैसा ही हाथ मिलाया है, जैसे एक मित्र दूसरे मित्र से मिलाता है (मानो पद में समान हो)। अब मैं आपकी सेवा में लगा हूँगा और विभिन्न प्रकार के जीवों की सृष्टि करूँगा। मैं किसी भी तरह विचलित नहीं होऊँगा, पर मुझे गर्व नहीं होना चाहिए कि मैं ही परमेश्वर हूँ।