श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  2.9.30 
 
 
यावत् सखा सख्युरिवेश ते कृत:
प्रजाविसर्गे विभजामि भो जनम् ।
अविक्लवस्ते परिकर्मणि स्थितो
मा मे समुन्नद्धमदोऽजमानिन: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  हे अजन्मा प्रभु, आपने मेरे साथ ठीक वैसा ही हाथ मिलाया है, जैसे एक मित्र दूसरे मित्र से मिलाता है (मानो पद में समान हो)। अब मैं आपकी सेवा में लगा हूँगा और विभिन्न प्रकार के जीवों की सृष्टि करूँगा। मैं किसी भी तरह विचलित नहीं होऊँगा, पर मुझे गर्व नहीं होना चाहिए कि मैं ही परमेश्वर हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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