यथात्ममायायोगेन नानाशक्त्युपबृंहितम् ।
विलुम्पन् विसृजन् गृह्णन् बिभ्रदात्मानमात्मना ॥ २७ ॥
अनुवाद
तथा हे स्वामी! अनुग्रह करके मुझे यह भी बताइए कि आप विभिन्न संयोगों द्वारा संहार, उत्पत्ति, स्वीकृति तथा पालन की विभिन्न शक्तियों को कैसे प्रकट करते हैं?