श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  2.9.27 
 
 
यथात्ममायायोगेन नानाशक्त्युपबृंहितम् ।
विलुम्पन् विसृजन् गृह्णन् बिभ्रदात्मानमात्मना ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  तथा हे स्वामी! अनुग्रह करके मुझे यह भी बताइए कि आप विभिन्न संयोगों द्वारा संहार, उत्पत्ति, स्वीकृति तथा पालन की विभिन्न शक्तियों को कैसे प्रकट करते हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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