श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  2.9.24 
 
 
सृजामि तपसैवेदं ग्रसामि तपसा पुन: ।
बिभर्मि तपसा विश्वं वीर्यं मे दुश्चरं तप: ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं इस ब्रह्मांड की रचना ऐसे ही तप के द्वारा करता हूँ, मैं इसी शक्ति से इसका संचालन करता हूँ, और इसी शक्ति से इस ब्रह्मांड को वापस अपने में समाहित कर लेता हूँ। इसलिए तप ही वास्तविक शक्ति है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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