वरं वरय भद्रं ते वरेशं माभिवाञ्छितम् ।
ब्रह्मञ्छ्रेय:परिश्राम: पुंसां मद्दर्शनावधि: ॥ २१ ॥
अनुवाद
मैं तुम्हें शुभकामनाएँ देता हूँ। हे ब्रह्मा, तुम मुझसे जो कुछ भी चाहो मांग सकते हो, क्योंकि मैं सभी आशीर्वादों का दाता हूँ। तुम्हें पता होना चाहिए कि सभी तपस्याओं का अंतिम आशीर्वाद मुझे साक्षात्कार करके देखना है।