श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  2.9.19 
 
 
तं प्रीयमाणं समुपस्थितं कविं
प्रजाविसर्गे निजशासनार्हणम् ।
बभाष ईषत्स्मितशोचिषा गिरा
प्रिय: प्रियं प्रीतमना: करे स्पृशन् ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  और ब्रह्माजी को अपने समक्ष देखकर भगवान् ने उन्हें जीवों की सृष्टि करने और जीवों को अपनी इच्छानुसार नियंत्रित करने के योग्य माना। इस प्रकार उनसे बहुत संतुष्ट होकर भगवान् ने ब्रह्मा से मंद-मंद मुस्कुराते हुए हाथ मिलाया और उन्हें इस प्रकार संबोधित किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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