श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  2.9.18 
 
 
तद्दर्शनाह्लादपरिप्लुतान्तरो
हृष्यत्तनु: प्रेमभराश्रुलोचन: ।
ननाम पादाम्बुजमस्य विश्वसृग्
यत् पारमहंस्येन पथाधिगम्यते ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार से श्री हरि के पूर्ण रूप का दर्शन करके ब्रह्मा जी का मन पूर्ण आनंद से भर उठा और दिव्य प्रेम तथा आनंद के कारण उनकी आँखों में प्रेम के आँसू आ गए। वे भगवान के सम्मुख नतमस्तक हो गये। जीवात्मा (परमहंस) के लिए सर्वोच्च सिद्धि का यही तरीका है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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