श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  2.9.17 
 
 
अध्यर्हणीयासनमास्थितं परं
वृतं चतु:षोडशपञ्चशक्तिभि: ।
युक्तं भगै: स्वैरितरत्र चाध्रुवै:
स्व एव धामन् रममाणमीश्वरम् ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान अपने सिंहासन पर विराजमान थे और उनके चारों ओर चार, सोलह, पाँच और छह प्राकृतिक ऐश्वर्यों वाली विभिन्न शक्तियाँ थीं। उनके साथ ही अस्थायी प्रकृति की अन्य छोटी शक्तियाँ भी थीं। लेकिन वे वास्तविक परमेश्वर थे और अपने धाम में आनंद ले रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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