श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  2.9.1 
 
 
श्रीशुक उवाच
आत्ममायामृते राजन् परस्यानुभवात्मन: ।
न घटेतार्थसम्बन्ध: स्वप्नद्रष्टुरिवाञ्जसा ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा- हे राजन, जब तक मनुष्य पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की शक्ति से प्रभावित नहीं होता तब तक भौतिक शरीर के साथ शुद्ध चेतना में शुद्ध आत्मा के सम्बन्ध का कोई अर्थ नहीं है। यह सम्बन्ध स्वप्न देखने वाले द्वारा अपने ही शरीर को कार्य करते हुए देखने के समान है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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