श्रीशुक उवाच
आत्ममायामृते राजन् परस्यानुभवात्मन: ।
न घटेतार्थसम्बन्ध: स्वप्नद्रष्टुरिवाञ्जसा ॥ १ ॥
अनुवाद
श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा- हे राजन, जब तक मनुष्य पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की शक्ति से प्रभावित नहीं होता तब तक भौतिक शरीर के साथ शुद्ध चेतना में शुद्ध आत्मा के सम्बन्ध का कोई अर्थ नहीं है। यह सम्बन्ध स्वप्न देखने वाले द्वारा अपने ही शरीर को कार्य करते हुए देखने के समान है।