श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 8: मार्कण्डेय द्वारा नर-नारायण ऋषि की स्तुति  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  12.8.45 
 
 
सत्त्वं रजस्तम इतीश तवात्मबन्धो
मायामया: स्थितिलयोदयहेतवोऽस्य ।
लीला धृता यदपि सत्त्वमयी प्रशान्त्यै
नान्ये नृणां व्यसनमोहभियश्च याभ्याम् ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, हे बद्धजीव के परम मित्र, यद्यपि इस जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार के लिए तुम सतो, रजो और तमोगुणों को जो तुम्हारी इलूजरी पावर हैं, स्वीकार करते हो। किन्तु बद्धजीवों को मुक्त करने के लिए तुम विशेष रूप से सतो गुण का प्रयोग करते हो। अन्य दो गुण उनके लिए पीड़ा, मोह और भय लाने वाले हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.