क्रीडन्त्या: पुञ्जिकस्थल्या: कन्दुकै: स्तनगौरवात् ।
भृशमुद्विग्नमध्याया: केशविस्रंसितस्रज: ॥ २६ ॥
इतस्ततोभ्रमद्दृष्टेश्चलन्त्या अनुकन्दुकम् ।
वायुर्जहार तद्वास: सूक्ष्मं त्रुटितमेखलम् ॥ २७ ॥
अनुवाद
पुञ्जिकस्थली नाम की अप्सरा अनेक गेंदों से खेल दिखाने लगी। स्तनों के भारीपन से उसकी कमर झुक रही थी और जूड़े में गुँथे फूल बिखर रहे थे। वह इधर-उधर नजर घुमाते हुए गेंदों के पीछे-पीछे दौड़ती तो उसके शरीर पर लपेटा हल्का कपड़ा ढीला हो गया और अचानक हवा ने उसके कपड़े उड़ा दिए।