तब देवरात के पुत्र याज्ञवल्क्य ने यजुर्वेद के मन्त्र उगल दिए और वहाँ से चले गये। एकत्रित शिष्यों ने उन यजुर्मन्त्रों को ललचाई नजरों से देखा और तीतरों का रूप धारण करके उन्हें चुग लिया। इसलिए यजुर्वेद के ये विभाग अति सुन्दर तैत्तिरीय संहिता अर्थात तीतरों द्वारा संकलित मन्त्र के नाम से विख्यात हुए।