श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 6: महाराज परीक्षित का निधन  »  श्लोक 64-65
 
 
श्लोक  12.6.64-65 
 
 
देवरातसुत: सोऽपि छर्दित्वा यजुषां गणम् ।
ततो गतोऽथ मुनयो दद‍ृशुस्तान् यजुर्गणान् ॥ ६४ ॥
यजूंषि तित्तिरा भूत्वा तल्ल‍ोलुपतयाददु: ।
तैत्तिरीया इति यजु:शाखा आसन् सुपेशला: ॥ ६५ ॥
 
अनुवाद
 
  तब देवरात के पुत्र याज्ञवल्क्य ने यजुर्वेद के मन्त्र उगल दिए और वहाँ से चले गये। एकत्रित शिष्यों ने उन यजुर्मन्त्रों को ललचाई नजरों से देखा और तीतरों का रूप धारण करके उन्हें चुग लिया। इसलिए यजुर्वेद के ये विभाग अति सुन्दर तैत्तिरीय संहिता अर्थात तीतरों द्वारा संकलित मन्त्र के नाम से विख्यात हुए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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