श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 4: ब्रह्माण्ड के प्रलय की चार कोटियाँ  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  12.4.38 
 
 
नित्यो नैमित्तिकश्चैव तथा प्राकृतिको लय: ।
आत्यन्तिकश्च कथित: कालस्य गतिरीद‍ृशी ॥ ३८ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार काल की प्रगति को चार प्रकार के विनाश के रूप में वर्णित किया जाता है - सतत, सामयिक, मौलिक और अंतिम।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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