दीपश्चक्षुश्च रूपं च ज्योतिषो न पृथग् भवेत् ।
एवं धी: खानि मात्राश्च न स्युरन्यतमादृतात् ॥ २४ ॥
अनुवाद
दीपक, उस दीपक के प्रकाश से देखने वाली आँख और दिखाई देने वाला दृश्य रूप, सभी मूल रूप से अग्नि तत्व से अलग नहीं हैं। ठीक उसी प्रकार, बुद्धि, इंद्रियाँ और ज्ञानेंद्रियों द्वारा होने वाली अनुभूतियाँ परम सत्य से पृथक नहीं होती, यद्यपि परम सत्य (अद्वैत) इनसे सर्वथा भिन्न होता है।