परम ईश्वर ने अपनी ही शक्ति, माया शक्ति का विस्तार करके संसार की अनेक जीव-जातियों को बनाया, जिसमें बंधी हुई आत्माएँ निवास कर सकें। परंतु वृक्षों, सरीसृपों, पशुओं, पक्षियों, सर्पों आदि जीवों को बनाकर भगवान अपने हृदय में संतुष्ट नहीं हुए। तब उन्होंने मनुष्य को बनाया, जिसके पास परम सत्य को समझने के लिए पर्याप्त बुद्धि है। इस तरह भगवान संतुष्ट हो गए।