श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 9: पूर्ण वैराग्य  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  11.9.28 
 
 
सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्त्या
वृक्षान् सरीसृपपशून् खगदन्दशूकान् ।
तैस्तैरतुष्टहृदय: पुरुषं विधाय
ब्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देव: ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  परम ईश्वर ने अपनी ही शक्ति, माया शक्ति का विस्तार करके संसार की अनेक जीव-जातियों को बनाया, जिसमें बंधी हुई आत्माएँ निवास कर सकें। परंतु वृक्षों, सरीसृपों, पशुओं, पक्षियों, सर्पों आदि जीवों को बनाकर भगवान अपने हृदय में संतुष्ट नहीं हुए। तब उन्होंने मनुष्य को बनाया, जिसके पास परम सत्य को समझने के लिए पर्याप्त बुद्धि है। इस तरह भगवान संतुष्ट हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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