तदैवमात्मन्यवरुद्धचित्तो
न वेद किञ्चिद् बहिरन्तरं वा ।
यथेषुकारो नृपतिं व्रजन्त-
मिषौ गतात्मा न ददर्श पार्श्वे ॥ १३ ॥
अनुवाद
जब मनुष्य की चेतना परम सत्य भगवान् पर पूरी तरह स्थिर हो जाती है, तो उसे द्वैत या आन्तरिक और बाह्य सच्चाई नहीं दिखती। उदाहरण के लिए, एक बाण बनाने वाला इतना तल्लीन था कि उसने अपने बगल से गुजर रहे राजा को भी नहीं देखा।