श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 8: पिंगला की कथा  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  11.8.37 
 
 
नूनं मे भगवान् प्रीतो विष्णु: केनापि कर्मणा ।
निर्वेदोऽयं दुराशाया यन्मे जात: सुखावह: ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि मैं दृढ़ता से भौतिक जगत का आनंद लेने की इच्छा रखता था, किंतु मेरे हृदय में किसी तरह वैराग्य उत्पन्न हो चुका है और यह मुझे अत्यंत सुखी बना रहा है। इसलिए भगवान विष्णु निश्चित ही मुझ पर प्रसन्न होंगे। मैंने अनजाने में ही उनको प्रसन्न करने वाला कोई कर्म अवश्य किया होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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