श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 7: भगवान् कृष्ण द्वारा उद्धव को उपदेश  »  श्लोक 66
 
 
श्लोक  11.7.66 
 
 
सासकृत्‍स्‍नेहगुणिता दीनचित्ताजमायया ।
स्वयं चाबध्यत शिचा बद्धान् पश्यन्त्यपस्मृति: ॥ ६६ ॥
 
अनुवाद
 
  चूँकि कबूतरी हमेशा से ही प्रगाढ़ स्नेह के बंधनों में जकड़ी रहती थी, इसलिए उसका मन व्यथा से छटपटाता रहता था। ईश्वर की माया के वशीभूत होकर, वह अपने आपको पूरी तरह से भूल गई और अपने असहाय बच्चों की ओर दौड़ती हुई, वह भी तुरंत जाल में फँस गई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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