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श्लोक 47
श्लोक
11.30.47
द्वारकायां च न स्थेयं भवद्भिश्च स्वबन्धुभि: ।
मया त्यक्तां यदुपुरीं समुद्र: प्लावयिष्यति ॥ ४७ ॥
अनुवाद
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"तुम और तुम्हारे परिजनों को यदुओं की राजधानी द्वारका में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि जैसे ही मैं इस शहर को छोड़ दूँगा, यह समुद्र के पानी से डूब जाएगा।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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