श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 29: भक्ति-योग  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  11.29.38 
 
 
प्रत्यर्पितो मे भवतानुकम्पिना
भृत्याय विज्ञानमय: प्रदीप: ।
हित्वा कृतज्ञस्तव पादमूलं
कोऽन्यं समीयाच्छरणं त्वदीयम् ॥ ३८ ॥
 
अनुवाद
 
  मेरे तुच्छ समर्पण के बदले में, आपने दयापूर्वक मुझ अपने नौकर को दिव्य ज्ञान का दीपदान दिया है। इसलिए आपका ऐसा कौन भक्त होगा जिसमें कृत्यज्ञता होगी, जो आपके चरणकमलों को छोड़कर किसी अन्य स्वामी की शरण लेगा?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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