श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 29: भक्ति-योग  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  11.29.37 
 
 
श्रीउद्धव उवाच
विद्रावितो मोहमहान्धकारो
य आश्रितो मे तव सन्निधानात् ।
विभावसो: किं नु समीपगस्य
शीतं तमो भी: प्रभवन्त्यजाद्य ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री उद्धव ने कहा: हे अजन्मे आदि भगवान्, यद्यपि मैं मोह के गहरे अंधकार में गिर चुका था, किन्तु आपकी दयामयी संगत से अब मेरा अज्ञान मिट गया है। निश्चय ही, शीत, अंधकार और भय उस पर कैसे अधिकार कर सकते हैं, जो तेजस्वी सूर्य के निकट पहुँच गया हो?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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