श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 29: भक्ति-योग  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  11.29.33 
 
 
ज्ञाने कर्मणि योगे च वार्तायां दण्डधारणे ।
यावानर्थो नृणां तात तावांस्तेऽहं चतुर्विध: ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  विश्लेषात्मक ज्ञान, कर्मकांडों, रहस्यमय योग, सांसारिक कार्यों और राजनीतिक शासन के माध्यम से लोग धर्म, धन, कामुकता और मुक्ति हासिल करने के लिए प्रयास करते हैं। किंतु चूँकि तुम मेरे भक्त हो, इसलिए जो भी चीज़ें इन विभिन्न तरीकों से प्राप्त की जा सकती हैं, वे सभी तुम आसानी से मेरे अंदर पा सकते हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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