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श्रीमद् भागवतम
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श्लोक 17
श्लोक
11.29.17
यावत् सर्वेषु भूतेषु मद्भावो नोपजायते ।
तावदेवमुपासीत वाङ्मन:कायवृत्तिभि: ॥ १७ ॥
अनुवाद
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जब तक व्यक्ति ने सभी जीवों के भीतर मुझे देखने की क्षमता पूरी तरह से विकसित नहीं कर ली है, तब तक उसे अपनी वाणी, मन और शरीर के क्रियाकलापों से इस प्रक्रिया के द्वारा मेरी पूजा करते रहना चाहिए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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