श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास » अध्याय 26: ऐल-गीत » श्लोक 30 |
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| | श्लोक 11.26.30  | |  | | भक्तिं लब्धवत: साधो: किमन्यदवशिष्यते ।
मय्यनन्तगुणे ब्रह्मण्यानन्दानुभवात्मनि ॥ ३० ॥ | | अनुवाद | | पूर्णभक्त को मुझ परब्रह्म की प्राप्ति के बाद क्या बचा रह जाता है? परब्रह्म के गुण अनगिनत हैं और मैं स्वयं आनंद का स्वरूप हूं। | |
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