भगवान श्री कृष्ण बोले : अपनी संपत्ति नष्ट होने से इस तरह निरपेक्ष हुए इस ज्ञानी ने अपनी निराशा तज दी। उसने संन्यास अपनाकर घर छोड़ दिया और पृथ्वी पर भ्रमण करने लगा। मूर्ख नीचों द्वारा अपमानित किए जाने पर भी वह अपने कर्तव्य से डिगा नहीं और उसने यह गीत गाया।