श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 23: अवन्ती ब्राह्मण का गीत  »  श्लोक 58
 
 
श्लोक  11.23.58 
 
 
श्रीभगवानुवाच
निर्विद्य नष्टद्रविणे गतक्लम:
प्रव्रज्य गां पर्यटमान इत्थम् ।
निराकृतोऽसद्भ‍िरपि स्वधर्मा-
दकम्पितोऽमूं मुनिराह गाथाम् ॥ ५८ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान श्री कृष्ण बोले : अपनी संपत्ति नष्ट होने से इस तरह निरपेक्ष हुए इस ज्ञानी ने अपनी निराशा तज दी। उसने संन्यास अपनाकर घर छोड़ दिया और पृथ्वी पर भ्रमण करने लगा। मूर्ख नीचों द्वारा अपमानित किए जाने पर भी वह अपने कर्तव्य से डिगा नहीं और उसने यह गीत गाया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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