दानं स्वधर्मो नियमो यमश्च
श्रुतं च कर्माणि च सद्व्रतानि ।
सर्वे मनोनिग्रहलक्षणान्ता:
परो हि योगो मनस: समाधि: ॥ ४५ ॥
अनुवाद
दान, धर्म, यम व नियम, शास्त्र श्रवण, पुण्य कर्म और शुद्धि प्रदान करने वाले व्रत- इन सबका अन्तिम उद्देश्य मन के दमन को प्राप्त करना होता है। सचमुच में तो सर्वोच्च योग है- ब्रह्म में मन को एकाग्र करना।