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श्लोक 42
श्लोक
11.23.42
द्विज उवाच
नायं जनो मे सुखदु:खहेतु-
र्न देवतात्मा ग्रहकर्मकाला: ।
मन: परं कारणमामनन्ति
संसारचक्रं परिवर्तयेद् यत् ॥ ४२ ॥
अनुवाद
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ब्राह्मण बोला: न तो ये लोग मेरे सुख और दुःख के कारण हैं, न देवता, मेरा शरीर, ग्रह, मेरे पिछले कर्म या समय ही। बल्कि, यह अकेला मन है जो सुख और दुःख का कारण है और भौतिक जीवन का चक्र चलाता रहता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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