सोऽहं कालावशेषेण शोषयिष्येऽङ्गमात्मन: ।
अप्रमत्तोऽखिलस्वार्थे यदि स्यात् सिद्ध आत्मनि ॥ २९ ॥
अनुवाद
यदि मेरे जीवन में कुछ समय बचता है, तो मैं तप करूँगा और अपने शरीर की जरूरतों को कम कर दूँगा। मैं अब और अधिक भ्रम में न पड़ कर जीवन में अपने पूरे आत्म-हित में लग जाऊँगा और अपने आप में ही संतुष्ट रहूँगा।