यद्यपि दीये का प्रकाश प्रकाश की असंख्य किरणों से मिलकर बना होता है और निरंतर बनता-मिटता रहता है, किन्तु जो व्यक्ति भ्रमवश मोहग्रस्त है और क्षण भर के लिए प्रकाश को देखता है, वह झूठ बोलता है और कहता है, "यह दीये का वही प्रकाश है।" यह स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसे नदी के बहते जल को देखकर कोई कहे, "यह नदी का वही जल है।" इसी तरह, यद्यपि मनुष्य का भौतिक शरीर निरंतर परिवर्तित हो रहा होता है, किन्तु जो लोग अपने जीवन को व्यर्थ गँवा रहे होते हैं, वे गलत तरीके से सोचते हैं और कहते हैं कि शरीर का प्रत्येक विशेष चरण व्यक्ति की वास्तविक पहचान है।