श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 22: भौतिक सृष्टि के तत्त्वों की गणना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  11.22.44 
 
 
यथार्चिषां स्रोतसां च फलानां वा वनस्पते: ।
तथैव सर्वभूतानां वयोऽवस्थादय: कृता: ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  सभी भौतिक शरीरों के रूपांतरण की विभिन्न अवस्थाएँ दीपक की लौ, नदी की धारा या वृक्ष के फलों के परिवर्तन के समान ही बदलती रहती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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