श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 20: शुद्ध भक्ति ज्ञान एवं वैराग्य से आगे निकल जाती है  »  श्लोक 32-33
 
 
श्लोक  11.20.32-33 
 
 
यत् कर्मभिर्यत्तपसा ज्ञानवैराग्यतश्च यत् ।
योगेन दानधर्मेण श्रेयोभिरितरैरपि ॥ ३२ ॥
सर्वं मद्भ‍‍क्तियोगेन मद्भ‍क्तो लभतेऽञ्जसा ।
स्वर्गापवर्गं मद्धाम कथञ्चिद् यदि वाञ्छति ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  जो भी वस्तुएँ सकाम कर्म, तपस्या, ज्ञान, वैराग्य, योग, दान, धर्म और जीवन को पूर्ण बनाने वाले अन्य साधनों से प्राप्त की जा सकती हैं, वे सभी मेरे भक्त को आसानी से मेरे प्रति प्रेममयी भक्ति से प्राप्त हो जाती हैं। यदि मेरा भक्त किसी भी तरह से स्वर्ग में पदोन्नति, मुक्ति या मेरे धाम में निवास करने की इच्छा रखता है, तो वह ये वर आसानी से प्राप्त कर लेता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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