मेरी कीर्ति की कथाओं पर विश्वास जगाकर, समस्त भौतिक गतिविधियों से ऊबकर, यह जानते हुए कि इंद्रियों का सुख दुखदायी होता है, पर इन्द्रिय सुखों का त्याग करने में असमर्थ, मेरे भक्त को चाहिए कि वो सुखी रहे और मेरे प्रति अटूट श्रद्धा तथा विश्वास के साथ मेरी आराधना करे। कभी-कभी इंद्रिय सुखों में लिप्त होने पर भी, मेरा भक्त जानता है कि सभी प्रकार के इन्द्रिय सुखों का परिणाम दुख है और वो ऐसे कार्यों के लिए सच्चे मन से पश्चाताप करता है।