श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 17: भगवान् कृष्ण द्वारा वर्णाश्रम प्रणाली का वर्णन  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  11.17.50 
 
 
वेदाध्यायस्वधास्वाहाबल्यन्नाद्यैर्यथोदयम् ।
देवर्षिपितृभूतानि मद्रूपाण्यन्वहं यजेत् ॥ ५० ॥
 
अनुवाद
 
  गृहस्थ आश्रम का व्यक्ति वेदों का अध्ययन करके ऋषियों की उपासना करे, स्वधा मंत्र द्वारा पितरों की पूजा करे, स्वाहा मंत्र द्वारा देवताओं को प्रसन्न करे, भोजन के हिस्से को बाँटकर जीवों की पूजा करे, अन्न और जल देकर मनुष्यों की पूजा करे। इस प्रकार देवताओं, ऋषियों, पितरों, जीवों और मनुष्यों को मेरी शक्ति का स्वरूप मानकर व्यक्ति को प्रतिदिन ये पाँच यज्ञ अवश्य करने चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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